(Europeans in India)
भारत मे सर्वप्रथम 1498 ई मे पुर्तागाली भारत के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से आये थे जिन्हे भारत मे व्यापार करने से मुनाफा हुआ जिसके उपरांत अन्य यूरोपिय देश डच, अंग्रेज, डेनिश तथा फ्रांसिसी भी भारत आये ।
पुर्तगाल(Europeans in India)
- पुर्तगाल व्यापारी भारत एवं पुर्वी देशों के साथ गरम मसालो का व्यापार करना चहते थें क्योकिं यूरोप के बाजार मे गर्म मसालो की मांग अधिक थी
- यूरोप के लोग गरम मसालो का उपयोग मीट या मांस या गोश्त बनाने मे करते थे
- पुर्तगाली व्यापारी तुर्की के झगङे से बचने के लिए नए समुद्री मार्ग खोजने मे सक्शम थे क्योकि पुर्तागालियों ने भौगोलिक खोज, समुद्री जहाज निर्माण कला तथा दिशा सुचक यंत्र का अविष्कार कर चुके थे ।
- 1487 ई मे राजकुमार के नाविक बार्थोलोमोडियाज ने नये समुद्री मार्ग उत्तमाशा अंतरीप या तुफानी अंतरीप की खोज किये थे लेकिन भारत आने मे असफल रहे थे ।
- उत्तमाशा अंतरीप का आधुनिक नाम केप आफ गुड होप था
- 20 मई 1498 ई मे पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा उत्तमाशा अंतरिप के चक्कर काटता हुआ कालीकट के तट के किनारे पहुचा जहाँ कालीकट के राजा जमोरिन ने उसका स्वागत किया अरब व्यापारियों ने उसका विरोध किया था
- वास्कोडिगामा ने भारत से मासालो को ले जाकर अमेरिका तथा यूरोप के अन्य देशों मे बेच कर 60 गुना अधिक मुनाफा कमाया था
- 1498 ई मे ही पुर्तगाली कम्पनी का निर्माण हुआ जिसका नाम एस्तादी द इण्डिया रखा गया
- 1503 ई मे पुर्तगालियो ने अपना पहला कारखाना कोचिन मे खोला था उसके बाद 1505 ई मे दुसरा कारखाना कन्नूर मे खोला था
फ्रांस्सिको डी अल्मीडा(Europeans in India)
पुर्तगाल के राजा ने फ्रांस्सिको डी अल्मीडा को भारत का वायसराय बनाकर भारत भेजा था।यह भारत का पहला यूरोपिय वायसराय था । इसकी एक नीति विकसित हुई जिसे blue water policy की नीति कहते हैं ।
अल्फांसो डी अल्बुकर्क
1509 अल्मीडा की मृत्यु के बाद अल्बुकर्क को भारत का वायसराय बनाकर भेजा गया यह एक कुशल सेना नायक सफल व्यापारी तथा सामराज्य विस्तार वादी विचारधारा वाला व्यक्ति था तथा अपने राज्य का खुब विस्तार किया अल्बुकर्क ने अपने राज्य मे सबसे पहले सतीप्रथा पर रोक लगाया था
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डच
डच व्यापारी हालैण्ड या नीदरलैण्ड के निवासी थे 1602 ई मे डच ईस्ट ईण्डिया कम्पनी का निर्माण हुआ प्रारम्भ मे इसका नाम ईस्ट ईण्डिया कम्पनी आफ डच रखा गया था इसकी शुरुवाती पुंजी 65 लाख गिल्डर थी । इसका पुरा नाम वारिंग्दे ओस्ट इण्डिसे कम्पनी रखा गया था। 1605 डचो का पहला कारखाना मछलीपट्टम मे खोला गया था तथा 1607 मे दुसरा कारखाना निजामपट्टम मे खोला गया था
डचो ने अपनी राजधानी पुलीकट मे बनाये थे तथा यही से ये अपना सिक्का पैगोडा ढालते थे। डचो की शुरुवाती पुंजी अंग्रेजो और पुर्तगालियो की तुलना मे बहुत कम थी इसलिए वे ज्यादा दिन तक नही टिक सके और अंग्रेजो के साथ बेदरा के युद्ध मे पराजित हो गये और भारत छोङ के चले गये।
अग्रेंज
- 1604 मे इग्लैण्ड के राजा जेम्स 1 ने भारत के साथ व्यापारिक संबध बनानेे के लिए अकबर के नाम फ्रेंड नाम का पत्र लिखा जो 1608 कैप्टन हाँकिंग ने समुद्री मार्ग से होते हुये सुरत मे जहांगीर के दरबार मे पहुचा
- मुगल बादशाह जहांगीर ने कैप्टन हांकिग को 400 मनसब (पद रैंक ) देकर इग्लिश खाँ या फिरंगी खाँ की उपाधि दी
- 1611 ई मे अग्रेंजो ने अपना पहला कारखाना पुर्वी तट पर मछलीपट्नम मे खोला तथा दुसरा कारखाना 1613 ई मे सुरत मे खोला था
- 1615 ई मे सर टोमस रो नाम का दुसरा व्यापारी राजा जेम्स का "परफेक्ट" नाम का पत्र लेकर जहांगीर के दरबार मे आया था
- 1626 ई तक अंग्रेजों के कारखाने आगरा, भङोच अहमदाबाद एंव अमरागाँव तक खुल गया था
- 1639 ई मे फ्रांसीस डे नामक अंग्रेज ने मद्रास पट्टे पर ले लिया था यहाँ पर किला बंद कोठी का निर्माण किया था इसका नाम फोर्ट सेन्ट जार्ज रखा था । फ्रांसीस डे ने ही मद्रास शहर बसाया था
- 1661 ई मे ईग्लैण्ड के राजकुमार चार्ल्स 2 का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन के साथ के साथ हुआ इस अवसर पर पुर्तगालियों ने चार्ल्स 2 को बम्बई दहेज मे दे दिया । जिसे 1668 ई मे चार्ल्स 2 ने 10 पाउण्ड वार्षिक किराये पर अंग्रेजी कम्पनी के हाथों ं मे सौंप दिये ।
- 1680 ई मे मुगल बादशाह औरंगजेब ने अंग्रेज व्यापारीयों के उपर 2% चुंगी कर तथा 1.5% जजिया कर लगा दिया थे
- 1690 ई मे जाँब चार्नोक ने कल्कत्ता शहर बसाया था
- 1833 के चार्टर एक्ट के आधार पर अग्रेजी कम्पनी का नाम ईस्ट ईण्डिया कम्पनी रखा गया
- अंग्रेज विभिन्न प्रकार के वस्तुओ का व्यापार करते थे जैसे नील शोरा अफीम चाय चीनी जूट एवं कपङो का व्यवसाय करते इत्यादि
डेनिश
डेनिश व्यापारी डेनमार्क देश के रहने वाले थे । 1616 ई मे डेनिश कम्पनी का निर्माण हुआ था । 1620 मे इन्होने अपना पहला कारखाना तंजौर के ट्रांकेबोर मे खोला था 1676 ई मे दुसरा कारखाना बांगल स्थित सीरमपुर मे खोला गया था । डेनिश व्यापारियो की पुंजी बहुत कम थी जिसके कारण इन्हे भारत मे बहुत ज्यादा लाभ न हो सका और इन्होने डच और अंग्रेज जैसी बङी कम्पनियों के आगे सफल न हो सके ।
1745 ई मे इन्होने अपने सभी कल कारखानों का सामान अंग्रेजो को बेचकर भारत छोङकर चले गये।
फ्रांसिसी
फ्रांसिसी व्यापारी फ्रांस देश के रहने वाले थे। फ्रांस के राजा लुई 14 वाँ के समय प्रसिध्द मंत्री कोलबर्ट के प्रयासो से 1667 ई मे फ्रांसीसी कम्पनी का निर्माण हुआ था इसका नाम कम्पनी द इण्ड ओरियण्टल रखा गया था यह कम्पनी पूर्णता सरकारी कम्पनी थी जिसका सारा खर्च फ्रांस की सरकार देती थी । 1668 मे फ्रासीसीयों का दल फ्रैंकोकैरी की अध्यक्षता मे भारत आया था
- 1668 ई मे फ्रांसिसीयों ने अपना पहला कारखाना सूरत मे खोला था । फ्रांसीसी व्यापारी गोलकुण्डा के राजा से अनुमति प्राप्त करके 1669 ई मे दुसरा कारखाना मछलीपट्टनम मे खोले थे
- 1673 ई मे फ्रांसीसी गवर्नर फ्रैंको मार्टिन ने वलिकोण्डपुरम के सुबेदार शेर खाँ लोदी से एक क्षेत्र खरीदकर उसका नाम पांडिचेरी रखे और इसे अपनी राजधानी बनाये थे
- 1674 ई मे बंगाल के सुबेदार शाइस्ता खाँ से एक क्षेत्र खरीदकर एक नगर चंन्द्रनगर बनाये थे
- फ्रांसीसीयों की सबसे बङी बस्ती पाडिचेरी थी जबकि बंगाल मे चन्द्रनगर थी
- फ्रासिसीयों ने बालासोर, कासिमबाजार, पटना इत्यादि जगहों पर फैक्टरियाँ स्थापिक किये थे।
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